शनिवार, 31 अक्तूबर 2015

कलम : आरसी चौहान



                            आरसी चौहान


कलम



पंखों की उर्वर जमीन पर उगे कलम

तुम्हें मालूम है अपने पूर्वजों के कटे पंख

जिसने कर दिया कितनों को अजर- अमर

और नरकट तुम

बने रहे

नरकट के नरकट !

तुम्हारी नोंक को तलवार की माफिक

बनाया गया धारदार

तुम्हारे मुंह से उगलवाया गया

मोतियों के माफिक शब्द

मंचों से वाहवाही बटोरते रहे

लेखकगण

और बदले में तुम्हारी जीभ को

काटते रहे बार- बार

फिर भी तुम बने रहे निर्विकार

नरकट

तुम्हारे भाई बंधु

किरकिच और सरकण्डे

लुप्तप्राय हो गये हैं और

आज तुम्हारी हड्डियों की कलम

तो सपने में भी नहीं दीखती



तुम्हारी शक्ल - सूरत से बेहतर

कारखानों में बनते रहे

तुम्हारे विकल्प

कीबोर्ड और कम्प्यूटर तो भरने लगे उड़ान

और बेदखल होते रहे तुम



तो क्या हुआ \

जादुई मुस्कान

घोलते हुए बोला नरकट

अब तुम नहीं बर्गला सकते हमें

हैं तो हमारे ही भाई बंधु

जो हमारे सपनों की उर्वर भूमि पर

अंगुलियों को अपने इशारों पर

नचाते हुए

उठ खड़े हुए हैं ये

जिनके पदचापों की अनुगूंज

सुनी जा सकती है

समूचे विश्व में।



                                      प्रकाशन-गाथान्तर ,संकेत


संपर्क   - आरसी चौहान (प्रवक्ता-भूगोल)
राजकीय इण्टर कालेज गौमुख, टिहरी गढ़वाल उत्तराखण्ड 249121
मोबा0-08858229760 ईमेल- chauhanarsi123@gmail.com

1 टिप्पणी:

  1. ब्लॉग बुलेटिन में आज यह रचना पढ़कर अच्छा लगा ...ब्लॉग पर आकर दूसरी में अच्छी अच्छी रचनाएँ पढ़ने को मिली ...

    जवाब देंहटाएं